मंगलवार, 28 मार्च 2023

"अपनी जबान"

"अपनी जबान"
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अर्चना त्यागी

आसिफ दुकान बंद करके जाने ही वाला था कि एक व्यक्ति हाथ में पॉलिथीन लिए दुकान के बाहर खड़ा दिखाई दिया। बड़े ध्यान से दुकान का नाम पढ़ रहा था। आसिफ दुकान में ही रुक गया। वह व्यक्ति दुकान के अंदर आया। देखने में बहुत स्मार्ट लग रहा था। बालों से झलकती सफेदी उम्र की चुगली कर रही थी। आसिफ ने उसके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर याद करके अंग्रेजी के शब्द बोलने शुरू किए। वह मुस्कुरा कर बोला ," आसिफ, एक कुर्ते पायजामे का नाप देना है। उस्मान चाचा कहीं दिख नहीं रहे हैं। तुम्ही नाप ले लो।" उसकी हिंदी सुनकर आसिफ हैरान था। उसने सोचा नहीं था कि इतना स्मार्ट दिखने वाला इंसान इतनी तहज़ीब से और हिंदी भाषा में बात करेगा। उसने इंचीटेप हाथ में लिया और नाप लेने लगा। ," सर, कुर्ता पायजामा बनवाना है ?" आसिफ ने पूछा। उस व्यक्ति ने कपड़ा पॉलिथीन में से निकलकर मेज पर रखा और नाप देते हुए कहा ," एकदम उस्मान चचा के माफिक सिलाई होनी चाहिए। फिटिंग बढ़िया चाहिए। दो महीने इधर ही रहूंगा। कुर्ता पायजामा ही पहनूंगा।" आसिफ नाप ले चुका था। उसने रंगीन चोक से कपड़े पर निशान बना दिए। "सर, जबसे दुकान पर बैठना शुरू किया है अब तक कोई शिकायत नहीं आई है। आप खुश हो जायेंगे कपड़े पहन कर। मेरा वादा है आपसे। मैं तो कहता हूं दो जोड़े बनवा लो।" उसने पर्ची बनाते हुए कहा। वह व्यक्ति चुपचाप सब सुन रहा था। ,"एक जोड़ा पिछले साल बनवाया था उस्मान चचा से। अभी उसे ही पहनता हूं। जब जाऊंगा तब बक्से में रखकर चला जाऊंगा दोनों जोड़ों को।" आसिफ ने कपड़ा रैक में रख दिया। तीन दिन बाद की तारीख और सिलाई पर्ची पर लिख दी। "ये रखो सिलाई। बस समय पर बना देना। खुद लेने नहीं आ पाया तो नौकर आकर ले जायेगा।" आसिफ को सिलाई के रुपए देते हुए अजनबी व्यक्ति ने कहा। "जी सर। शुक्रिया।" कहकर आसिफ ने पैसे जेब में डाल लिए। दोनों दुकान से बाहर की ओर चले। ," उस्मान चचा को गुजरे कितने दिन हुए ?" उसने आसिफ से पूछा तो आसिफ चौंक गया। ," दो साल पहले उनका इंतकाल हो गया था। दुकान पर ही दिल का दौरा पड़ा था। हस्पताल जाने से पहले ही दम तोड दिया।" आसिफ ने दुकान का शटर डालते हुए कहा। ,"पर आप कैसे उनको जानते हो सर ?" आसिफ ने रूक कर उस व्यक्ति से प्रश्न किया। वह फिर से मुस्कुराया। ,"तुमने अब भी मुझे नहीं पहचाना आसिफ भाई ? सब भूल गए हो। मुझे तो चाची के हाथ की बनी सेवइयां अभी तक याद हैं।" उसकी बात सुनकर आसिफ चौंका। उसने उस व्यक्ति को गौर से देखा। ," विपिन तो नहीं हो तुम ? पढ़ाकू राम ?" उसने पूछा फिर कुछ याद करके बोला ," तुम तो ऑस्ट्रेलिया चले गए थे। कब वापिस आए ?" विपिन ज़ोर से हंसे। ,"आखिरकार याद दिला ही दिया बरखुर्रदार। मैं अभी घर जा ही रहा हूं। उस्मान चचा के बारे में पता लगा था। दुकान खुली थी तो तुमसे मिलने चला आया। परंतु तुमने तो पहचाना ही नहीं। कॉलेज जाने तक चचा के सिले कपड़े पहनते थे, बस यही सोचकर नाप देने आ गया।" आसिफ ने ठंडे स्वर में कहा," ज़िंदगी की रेस ने मीठा और नमकीन सब भुला दिया है। बस रोज़ी रोटी कमाना ही याद है।"  आसिफ और विपिन दुकान के बाहर लगे पेड़ के नीचे खड़े थे। बचपन से लेकर कॉलेज ख़त्म होने तक सभी बातें दोहराई जा रही थी। ऑस्ट्रेलिया आज़ भारत में अपनी ज़मीन ढूंढ रहा था। आसिफ समझ गया था कि ऑस्ट्रेलिया चले जाने वाले भी अपने दिल में हिंदुस्तान रखते हैं।विदेशी भाषा सीखकर भी अपनी ही जबान बोलते हैं।

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