शिक्षा बिना मानव अधूरा कहा भी गया है
अशोक पटेल "आशु"
"येषां विद्या न तपो न दानं
ज्ञानं न शीलं न गुणों न धर्म:।
ते मृत्यु लोके भुवि भारभूता
मनुष्यरूपेण मृगाश्र्चरन्ति।।"
अर्थात जिस मनुष्य के पास ज्ञान,त्याग,और दान-धर्म मर्यादा शीलता के अभाव है, वह निश्चित रूप से इस धरती पर बोझ के समान है।और वह एक मनुष्य के रूप में पशु के समान ही है।
निश्चित रूप से मनुष्य के लिए यह शिक्षा नितांत आवश्यक है।इसके बिना उसका जीवन निरर्थक है।अर्थपूर्ण जीवन के लिए ज्ञान का अर्जन करना मानव का परम् कर्तव्य होना चाहिए।
ज्ञान प्राप्त करने के बाद मनुष्य के जीवन मे बहुत कुछ बदलाव आता है।जीवन मे निष्ठा,आदर्श,त्याग,समर्पण की भावना,राष्ट्रीयता,की भावना जागृत होती है।
मनुष्य अपने आप को समझ पाता है,और वह यह भी जाना पाता है कि उसके मानव जीवन का ध्येय क्या है?उसके कर्तव्य क्या है?उसके धर्म क्या है?उसके लिए सही रास्ते क्या ह?उनके जीवन के सही उद्देश्य क्या है?इन सारी बातों को वह अच्छी तरह समझ पाता है।और जिस दिन इन बातों को वह समझ पाता है, उसके जीवन का उद्देश्य पूरा होना शुरू हो जाता है।
और फिर शुरू होता उसके जीवन मे एक नया अध्याय। जिसको कहा जाता है-आदर्श जीवन।उद्देश्यपूर्ण जीवन।संस्कारपूर्ण जीवन।धर्म से युक्त जीवन।बाधाओं से मुक्त जीवन।
अर्थात कहा भी गया है-
वही विद्या है जो विमुक्त करे-
"सा विद्या या विमुक्तये ।"
शिक्षा जीवन के लिए यदि नितांत आवश्यक है, तो यह भी आवश्यक है कि वह शिक्षा संस्कार से युक्त हो अन्यथा वह शिक्षा, बेईमानी होगी।वह शिक्षा अधूरी होगी।
क्योकि बिना संस्कार के शिक्षा, आदर्श,परिष्कृत और,जनहितार्थ नही हो सकती।संस्कार पूर्ण शिक्षा जीवन को सही रास्ता दिखाती है,जीवन को सुखमय बनाती है।अंततः जीवन को मोक्ष् भी प्रदान करती है।
संस्कार से युक्त जीवन व्यक्ति में आदर्श,मर्यादा,सत्य,निष्ठा,त्याग,बलिदान,धर्म-आस्था का देशप्रेम की भावना को जागृत करता है।और यही शिक्षा का मूल उद्देश्य है इसके बिना शिक्षा का कोई महत्व नही है।और बिना संस्कार के शिक्षा का कोई औचित्य नही।