रंगों का त्यौहार होली
सुधा दुबे , भोपाल
बसंत पंचमी के आते ही प्रकृति में एक नवीन परिवर्तन आने लगता है। मौसम में ठंडक कम होने लगती है।और मंद मंद समीर बहने लगती है, इधर पतझड़ भी शुरू हो जाती है। माघ की पौर्णिमा पर होली का डांडा गाड दिया जाता है। आम्र मंजरी पर भंवरे मंडराने लगते हैं, वृक्षों में कहीं कहीं नवीन पत्तों के दर्शन भी होने लगते हैं प्रकृति की एक नई छटा का अनुभव होने लगता है इस प्रकार होली पर्व के आते ही एक नवीन रौनक नवीन उत्साह एवं उमंग की लहर दिखाई देने लगती है।
होली जहाँ एक ओर सामाजिक एवं धार्मिक त्योहार है वही रंगों का भी त्यौहार है बाल, वृद्ध, नर ,नारी सभी इसे बड़े उत्साह से मनाते हैं यह देश भर में भाईचारे का त्यौहार भी है इसमें जाति भेद का कोई स्थान नहीं है इस अवसर पर लकड़ियों, कंडो ,और आजकल गौ काष्ठ का चलन हो गया है , होली का पूजन किया जाता है फिर उसमें अग्नि प्रज्जवलित की जाती है।
इस पर्व को खेतों में नवीन अनाज के आने और हवन प्रसाद लेने की परंपरा के रूप में भी मनाया जाता है होला से इसका नाम होलिका उत्सव भी पड़ा।होली उत्सव मनाने के संबंध में अनेक मत प्रचलित हैं।
जैसे मानता है कि इस पर्व का संबंध काम के नाश से है भगवान शंकर ने अपनी क्रोध की अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था।
8 दिन तक होलिका अष्टक मनाया जाता है भारत के कई प्रदेशों में होली का अष्टक शुरू होने पर पेड़ की शाखा काटकर उसमें रंग-बिरंगे कपड़ों के टुकडे या पन्ने या फिर झंडे बांधते हैं इस शाखा को जमीन में गाड़ दिया जाता है सभी लोग इस के नीचे होली का उत्सव मनाते हैं।
यह त्यौहार हिरण्यकशिपु की बहन की स्मृति में भी मनाया जाता है ऐसा कहा जाता है कि हिरण्यकश्यप की बहन को वरदान प्राप्त था कि वह नित्य प्रति अग्नि स्नान करती थी और जलती नहीं थी। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन से प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि स्नान करने को कहा ।उसने समझा कि ऐसा करने से प्रहलाद जल जाएगा और होलिका बच जाएगी परंतु ऐसा नहीं हुआ होलिका तो जल गई ।किंतु पहृलाद जीवित बच गया तभी से इस त्योहार को मनाने के चलन चल पड़ी। अभी से बुराइयों के ऊपर सच्चाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन आम मंजरी तथा चंदन को मिलाकर खाने का बड़ा महत्व है। जो लोग फागुन पूर्णिमा के दिन एकाग्र चित्त से हिंडोले में झूलते हुए श्री गोविंद पुरषोतम के दर्शन करते हैं वे सीधे बैकुंठ लोक में वास करते हैं।
भविष्य पुराण में कहा गया है कि एक बार नारद जी ने महाराज युधिष्ठिर से कहा "राजन फागुन की पूर्णिमा को सब लोगों को अभय दान देना चाहिए जिससे संपूर्ण प्रजा उत्साह पूर्वक हँसती रहे। बच्चे गाँव के बाहर से लकड़ी कंडे लाकर ढेर लगाएं और होली का सामग्री सहित विधिवत पूजन करें ।होली का दहन करें ऐसा करने से सारे अनिष्ट दूर हो जाते हैं इस कारण भी होली मनाई जाती है। जैसा कि गीता में भगवान श्री कृष्ण का कहना था कि है अर्जुन में प्राणियों में धर्म अनुकूल काम प्रवति हूँ अतः धर्म के अनुसार काम पृवति भी उचित है।
होली आनंद उल्लास का पर्व है इसमें जहाँ एक ओर उत्साह उमंग की लहरें तो वही दूसरी ओर कुछ बुराइयां भी वर्तमान काल में आ गई हैं मिठाई के साथ भांग खाना या कुछ लोग इस अवसर पर अबीर गुलाल के स्थान पर कीचढ़ गोबर ,मिट्टी आज भी एक दूसरे पर लगाते हैं ऐसा करने से आपस में मित्रता के स्थान पर शत्रुता का जन्म होता है। शराब का सेवन कर अश्लील एवं गंदे मजाक एक दूसरे को चोट पहुंचाते हैं अतः इन सबका त्याग करना चाहिए ।होली मिलन मित्रता एवं एकता का पर्व है इस दिन बैर भाव भूलकर सबसे प्रेम और भाईचारे से मिलना चाहिए एकता सद्भावना एवं उल्लास का परिचय देना चाहिए यही इस पर्व का शिवम संदेश है।