"रंगों के छींटे "
अर्चना त्यागी
संदीप ने गाड़ी रोकी तो देखा सड़क किनारे एक छोटी बच्ची सो रही थी। उसे हैरानी हुई। सड़क सुनसान नहीं थी। वाहनों का लगातार आवागमन चल रहा था। फिर बच्ची सोई हुई क्यों थी? कौन उसे सड़क किनारे सुलाकर गया था ? उसका भला करना चाहता था या उसका जीवन छीन लेना चाहता था। संदीप सोच सोच कर परेशान हो रहा था। बच्ची अगर नींद से जाग कर सड़क पर आ जाती तो बचने की संभावना कम ही थी। उसने बच्ची को गोद में उठाया और गाड़ी की पिछली सीट पर लिटा दिया। वह अब भी सो ही रही थी। घर पहुंचा तो चौकीदार ने दरवाज़ा खोला। गाड़ी खड़ी करके सचिन बच्ची को गोद में उठाए उपर आ गया। मां जगी हुई थी। टीवी देखते देखते बोली,"सोनू, खाना गर्म कर देती हूं। जल्दी से कपड़े बदलकर आ जा।" सोनू उनके पास जाकर खड़ा हुआ तो उन्होंने टीवी से नज़र हटाई। चौंक कर खड़ी गई। ,"ये कौन है? किसे उठा लाया?" सोनू ने मुंह पर उंगली रखकर चुप रहने का इशारा किया। ," सो रही है। उठ जायेगी।" मां को गुस्सा आ गया। ,"किसकी लड़की है? घर क्यों उठा लाया है?" सोनू ने तब तक बच्ची को सोफे पर लिटा दिया था। ,"मां, सड़क किनारे अकेली पड़ी हुई थी। इसके साथ कोई दुर्घटना घट सकती थी। इसलिए मैं घर पर ले आया। कल पता कर लेंगे किसकी बच्ची है?" मां ने एक चादर बच्ची को ओढ़ा दी। सचिन ने कपड़े बदलकर खाना खाया लेकिन बच्ची तब तक भी नहीं उठी। उठना तो दूर हिली डुली भी नहीं। डॉक्टर को बुलाया तो उसने बताया कि बच्ची को नींद को गोली दी गई थी इसीलिए वह सोती रही।
सुबह उठते ही बच्ची ने हंगामा खड़ा कर दिया। मम्मी पापा के पास जाना है। मां ने खिलौने दिलवाकर उसे चुप कराया। इंस्पेक्टर से बात की लेकिन उसका कहना था कि पिछले चौबीस घंटों में किसी भी बच्चे की गुमशुदगी की कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई थी। सचिन कार्यवाही में लगा हुआ था लेकिन मन ही मन वह चाहता था कि कोई भी बच्ची को लेने नहीं आए और वह उसके पास ही रहे। बच्ची बरबस उसे प्रिंसी की याद दिला रही थी। उसकी अपनी बेटी प्रिंसी। उस दिन को कोस रहा था जब उसने प्रिंसी और अपनी पत्नी को लेने ड्राइवर को भेज दिया था। वह खुद काम में बहुत व्यस्त था। रास्ते में कार दुर्घटना और ड्राइवर सहित प्रिंसी और सुमन दोनों ही दुनिया को अलविदा कह गए। पीछे रह गया बस एक पछतावा। घटना को दस साल बीत गए थे लेकिन आज़ भी सचिन अकेला ही था। उसने दूसरी शादी नहीं की। मां भी थक हारकर चुप हो गई।
बच्ची का पूरा चेक अप करवाने पर पता चला कि उसके दिल में छेद था। यह बात सामने आते ही सचिन ने लड़की के माता पिता को ढूंढना बंद कर दिया। मां का कहना था किसी ने जान बूझकर बच्ची को सड़क किनारे छोड़ दिया था ताकि उसके इलाज़ का खर्च बच जाए या फिर खर्च उठाने की असमर्थता के चलते। अब पूरा ध्यान उसके इलाज़ पर केंद्रित था। बच्ची की आदतें और बोलचाल देखकर यही समझ आता था कि वह किसी गरीब परिवार में जन्मी थी।
दिल का ऑपरेशन सफल रहा और बच्ची की हालत पहले से ज्यादा बेहतर हो रही थी। मां उसे प्रिंसी कहकर ही बुलाती थी। बच्ची भी अब सचिन और उसकी मां के साथ पूरी तरह घुल मिल गई थी। लेकिन एक दिन अचानक दोपहर के समय किसी ने दरवाजे की घंटी बजाई। एक आदमी और एक औरत सामने खड़े थे। सचिन ऑफिस में ही था। घर पर प्रिंसी और सचिन की मम्मी ही थी।
,"हमारी बेटी को हमे वापिस कर दो।" उस आदमी ने गुस्से में कहा।औरत मुंह में पल्लू दबाए चुप खड़ी थी। ,"तुम क्यों कुछ नहीं कहती हो? कैसी मां हो? बेटी को सामने देखकर भी पास नहीं बुला रही हो।" आदमी ने उस औरत से कहा जो देखने में उसकी पत्नी लग रही थी। औरत ने उसकी ओर देखा और बोली," भोली तो मुझे पहचान ही नहीं रही है। कैसे पास बुलाऊं ?" सचिन की मम्मी ने फोन करके सचिन को घर बुलवाया। वह आदमी ज़िद कर रहा था कि प्रिंसी उसी की बेटी थी। ,"कोई सबूत है तुम्हारे पास कि यह बच्ची तुम्हारी है?" सचिन के पूछने पर उसने बच्ची का आधार कार्ड सामने कर दिया। सचिन का चेहरा उतर गया लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। ,"अभी पुलिस इंस्पेक्टर से तुम्हारी बात करवाता हूं। अगर वो मान लें कि सबूत सही है तब ही मैं मान सकता हूं कि बच्ची तुम्हारी है। वरना नहीं।" उसने सख्त आवाज़ में कहा। औरत ने आदमी की ओर देखा फिर सचिन से बोली," नहीं साहेब, पुलिस के झमेले में नहीं पड़ना है। बच्ची हमारी है। हम झूठ नहीं बोल रहे हैं।" मां ने उसकी बात का जवाब दिया।," फिर पुलिस से क्यों डरती हो? इतने दिनों तक बच्ची की याद नहीं आई ? पुलिस में खो जाने की रिपोर्ट भी नहीं लिखवाई। पुलिस जब तक तहकीकात करके नहीं कहे तब तक हम नहीं मानेंगे।"
औरत का चेहरा उतर गया। डर गई। उसने नफरत से अपने पति की ओर देखा और बोली," तुम्हारे कर्मों की सजा है। अब चलो यहां से।" सचिन कुछ समझा नहीं। मां भी आश्चर्य से उन दोनों को देख रही थी। उसने रोते हुए मां के पैर पकड़ लिए।," माताजी, मेरी भोली को आप अपने पास ही रख लो। इस आदमी ने उसकी बीमारी का पता चलते ही उसे सड़क किनारे नींद की गोली देकर सुला दिया था।" सचिन ने उस आदमी का कॉलर पकड़ा तो वह बीच में आ गई।," अब इसकी गलती नहीं है। इसे पता चल गया था कि भोली ठीक हो गई है। ये नहीं आना चाहता था लेकिन आपके घर का चौकीदार इसका दोस्त है। उसने सांठ गांठ की कि बच्ची के बदले ढेर सा रुपया लेकर आपस में बांट लेंगे।" कहकर वह ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। पुलिस इंस्पेक्टर भी तब तक आ गया था। आदमी भागने लगा लेकिन सचिन ने पकड़ लिया। प्रिंसी रंगों से भरी थाली लेकर घूम रही थी। हर तरफ रंग बिखरे हुए थे। सचिन और उसकी मां की बेरंग ज़िंदगी में भी कुछ छींटे पड़ गए थे।