सोमवार, 29 मई 2023

कर्ण की ओजस्वी , उदार और दिव्य छबि को प्रदर्शित करता नाटक ‘ कर्णभार ‘

कर्ण की ओजस्वी , उदार और दिव्य छबि को प्रदर्शित करता नाटक ‘ कर्णभार ‘
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उज्जैन| महाराज विक्रमादित्य शोधपीठ द्वारा आयोजित विक्रमोत्सव 2023 के अंतर्गत शानदार नाटकों की श्रंखला के अंतर्गत 18 मार्च की शाम कालिदास अकादमी में नाटक ‘ कर्णभार ‘ के नाम रही | मध्यप्रदेश नाटक लोक कला अकादमी ,उज्जैन द्वारा निर्मित नाटक कर्णभार , महाकवि श्री भास द्वारा रचित सुप्रसिद्ध संस्कृत नाटक कर्णभारम का हिन्दी रूपांतरण है | नाटक का निर्देशन और हिन्दी रूपांतरण प्रो. प्रभातकुमार जी भट्टाचार्य ने किया है | संकल्प के धनी डा प्रभातकुमार भट्टाचार्य इस समय नब्बे वर्ष की आयु पार गए हैं मगर इस नाटक को पूरे मनोयोग से निर्देशित कर प्रशंसा पाई | उल्लेखनीय है वर्ष 1980 में भट्टाचार्य जी प्रथम भास नाट्य समारोह में भास के सात संस्कृत नाटकों का रूपांतरण  और मंचन कर चुके हैं | भट्टाचार्य जी के नाटक दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य समारोह सहित देश भर में मंचित होते रहे हैं | आपको नाट्य लेखन ,मंचन और निर्देशन का गहन अनुभव है और इसलिए सबकी निगाहें ‘ कर्णभार ‘ नाटक पर भी लगीं थीं |
      नाटक की कथावस्तु महारथी कर्ण के विराट व्यक्तित्व , दानशीलता , माता कुंती के द्वारा रहस्योद्घाटन कि कुंती , ही कर्ण की माता है और कर्ण की मनोदशा का सजीव चित्रण नाटक कर्णभार में हुआ है | ब्राह्मण बन कर ऋषि परशुराम से शस्त्र विद्या सीखना और बदले में श्राप मिलने के दृश्य रोचक रहे | राजा इंद्र द्वारा , भिक्षुक बन कर दान में कर्ण के कवच और कुंडल मांग कर ले जाना कर्ण की दानवीरता के अनुपम उदाहरण हैं | सुर्यपुत्र कर्ण किसी भी तरह , इंद्रपुत्र अर्जुन से महाभारत के युद्ध में भारी न पड़ जाए उसके लिए कर्ण के दानी होने को ही ,उनकी कमजोरी मानकर , महाभारत काल से ही ये घटनाक्रम षड्यंत्र से ही प्रतीत होते रहे हैं |
     प्रमुख पात्रों में कर्ण का अभिनय कर रहे श्री अधिराज ललित ने अपनी अदाकारी और संवाद प्रस्तुति से खूब तालियाँ पाईं | माता कुंती के रूप में डा जया कात्यायन मिश्र ने , अपने सजीव अभिनय से बहुत प्रभावित किया | अभिनेता कुलदीप दुबे रंगमच से पहले से जुड़े हैं और देश ,विदेश में अपने अभिनय के लिए जाने जाते हैं ने भट्ट और देवराज इंद्र का जोरदार किरदार प्रस्तुत किया | परिपार्श्वक और सारथी शल्य के रूप में श्री कोमल खत्री ने अपनी भूमिका का पूर्ण निर्वाह किया | सूत्रधार और ऋषि परशुराम जी के रूप में श्री रवि शर्मा प्रभावी रहे | कोरस कलाकार के रूप में भारतीय महाविद्यालय की छात्राएं थीं जिन्होंने नाटक की प्रस्तुति को चार चाँद लगा दिए |
     नाटक के संवाद , कर्णप्रिय हैं | नाटक को आगे बढाने और प्रभाव उत्त्पन्न करने में संगीत संयोजन [ जयेंद्र रावल ] लाजवाब था | वेशभूषा , रूप सज्जा [ गयूर कुरेशी ] नाटक के अनुकूल थी | प्रकाश संयोजन [ पंकज आचार्य ] नाटक को उभारने में सफल रहा | नाटक की निर्माता श्रीमती कृष्णा बनर्जी , सह निर्देशक शुभ आशीष बनर्जी और मंच व्यवस्थापक हरदीप दायले हैं | लगभग एक घंटे की अवधि का यह नाटक कर्ण की मनोदशा , ओजस्वी , दिव्य और उदार छबि प्रस्तुत कर , दर्शकों की तालियाँ पाने में सफल रहा | नाटक के बारे में आरंभिक उद्घोषणा मुम्बई के अभिनेता राजेन्द्र गुप्त ने रिकॉर्ड कर भेजी थी | सञ्चालन श्री दिनेश दिग्गज ने और नाटक की कथावस्तु और पात्र परिचय मध्यप्रदेश नाटक लोककला अकादमी उज्जैन , की अध्यक्ष डा निवेदिता वर्मा ने दी| नाटक के अंत में महाराजा विक्रमादित्य शोध पीठ के निदेशक श्री श्रीराम तिवारी ने आभार प्रकट किया |

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