सोमवार, 29 मई 2023

घर की मुंडेर पर नहीं आती चिड़िया....

घर की मुंडेर पर नहीं आती चिड़िया....
Share This Page :

डॉ महेश परिमल

बचपन में चिड़ियों पर बहुत सी कहानियां पढ़ते थे। मां की कहानियों में भी कभी-कभी चिड़िया चूं-चूं बोल जाती थी। अपने दोनों पंजों से चिड़िया जब आगे बढ़ती है, तो उसे फुदकना कहते हैं, यह मां की कहानियों से ही जाना। चिड़िया से आज तक किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ। सचमुच अपने सामने किसी चिड़िया का चहकना कितना भला लगता है। उसकी चहचहाहट में भी एक लय है। बचपन मानो उसकी लय पर थिरक उठता है। हममें से शायद ही कोई ऐसा हो, जिसने चिड़ियों की चहचहाहट न सुनी हो। वह बचपन, बचपन ही नहीं, जिसमें चिड़ियों की चहचहाहट वाली कोई कहानी ही न हो। मेरा बच्चा एक दिन कुछ कह रहा था। चिड़िया आती है, चिड़िया जाती है, चिड़िया दूर-दूर चली जाती है। फिर आती है, दाना चुगकर चली जाती है..। बच्चों के कोमल मन पर भी चिड़िया अपना प्रभाव अवश्य छोड़ती है। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक चिड़ियों का साथ होता है। एकमात्र यही ऐसा परिंदा है, जिसे कोई अपना दुश्मन नहीं मानता। लेकिन आज ये ही दोस्त हमारे बीच से गुम हो रहे हैं। अब सुबह चिड़ियों की चहचहाहट से नहीं होती। उनकी राह देखनी पड़ती है। भाग्य अच्छा हो, तो वह दिख भी जाती है। कांक्रीट के जंगल में अब वह अपना घरौंदा नहीं बना पाती। पहले पेड़ों पर अपना घरौंदा वह बना भी लेती थी। पेड़ उसके घरौंदे को सुरक्षित रख भी लेते थे। आज कांक्रीट के इस जंगल में ऐसी कोई बिल्डिंग नहीं, जो उसके घरौंदे को महफूज रख सके। इन घरों में वह सब कुछ होता है, जिससे घर संवरता है। ऐसे घरों में चिड़ियों का प्रवेश होता तो है, पर उस घर के लिए नुकसानदेह साबित होता है। कभी एक उंगली जितने सहारे पर टिकी कोई फ्रेम या शो पीस या फिर कोई कीमती सामान, इन चिड़ियों के कारण टूट फूट जाता है। ऐसे घरों के लोग चिड़ियों को दुत्कारने लगते हैं। वास्तव में चिड़ियाएं वहां प्यार का संदेशा देने जाती हैं। पर उनके संदेशों को कोई सुनना नही चाहता।

आखिर चिड़िया क्यों हमारे आँगन में नहीं फुदकती? क्या वह हमसे नाराज है? या फिर वह हमसे कुछ कहना चाहती है? दरअसल चिड़ियाएं कभी किसी से नाराज नहीं होतीं। नाराज होना तो उनके स्वभाव में ही नहीं है। वे तो यह समझ ही नहीं पा रही हैं कि अब घरों में उसके लिए जगह क्यों नहीं है? उसके लिए दाने पानी के कटोरे अब कहीं-कहीं ही देखने को मिलते हैं। ऐसा क्यों है, यह सोचना उसका काम नहीं। सोचना तो हमें है कि आखिर चिड़ियाएं अब घरों के अंदर बेखौफ होकर क्यों नहीं आतीं? बसेरे के लिए अब उतने घने दरख्त भी कहां बचे, जहां वह अपने बच्चों को सुरक्षित रखकर दाने पानी की तलाश में निकल सके। पेड़ और इंसान के दरो-दीवार उसके विश्वास और भरोसे के दायरे से धीर-धीरे अब दूर होने लगे हैं। अब सुनने को नहीं मिलती गोरैया की मीठी तान, न उस पर कोई कहानी। अब न नानी है, न कहानी। हम प्रतीक्षा करते हैं, दाना पानी लेकर चिड़िया का। वह आएगी, दाना चुगेगी और चोंच में दबाकर चली जाएगी। बिल्कुल बच्चे की कविता की तरह। आप बताएंगे, क्या चिड़िया आएगी? क्या वह हमसे नाराज है? क्या वह हमसे कुछ कहना चाहती है? क्या हम उससे यह वादा नहीं कर सकते कि हमारी सुबह उसकी चहचहाहट से होगी? हम देंगे उसे दाना पानी। हम रखेंगे उसका खयाल। हम सिद्ध कर देंगे कि हम उस पर आश्रित हैं, वह हम पर नहीं।

वैसे तो हर साल 20 मार्च को विश्व गोरैया दिवस मनाया जाता है। पर हमारे देश में यह भी अन्य दिनों की तरह एक ऑपचारिकता ही है। विश्व गौरैया दिवस की स्थापना द नेचर फॉरएवर सोसाइटी के संस्थापक मोहम्मद दिलावर ने की थी। उन्होंने जैव विविधता फोटो प्रतियोगिता, वार्षिक स्पैरो अवार्ड्स, प्रोजेक्ट सेव अवर स्पैरो और कॉमन बर्ड मॉनिटरिंग ऑफ इंडिया कार्यक्रम सहित कई परियोजनाएं शुरू कीं। पहला विश्व गौरैया दिवस वर्ष 2010 में आयोजित किया गया था। वर्ल्ड स्पैरो अवार्ड्स की स्थापना 2011 में की गई थी। यह पुरस्कार उन व्यक्तियों कोदिया जाता है, जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण और सामान्य प्रजातियों के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 20 मार्च का दिन घरेलू गौरैया और इससे होने वाले खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए है। विश्व गौरैया दिवस का उद्देश्य पूरी दुनिया में जागरूकता बढ़ाना और प्रक्षियों की रक्षा करना है। कुछ साल पहले आम तौर पर लोगों के घरों में गौरैयों को देखा जाता था। बढ़ते ध्वनि प्रदूषण के कारण यह पक्षी अब विलुप्त होने के कगार पर है।

गौरेया आज संकटग्रस्त पक्षी है, जो पूरे विश्व में तेज़ी से विलुप्त हो रही है। दस-बीस साल पहले तक गौरेया के झुंड सार्वजनिक स्थलों पर भी देखे जा सकते थे, लेकिन खुद को परिस्थितियों के अनुकूल बना लेने वाली यह चिड़िया अब भारत ही नहीं, यूरोप के कई बड़े हिस्सों में भी काफ़ी कम रह गई है। ब्रिटेन, इटली, फ़्राँस, जर्मनी और चेक गणराज्य जैसे देशों में इनकी संख्या जहां तेज़ी से गिर रही है, तो नीदरलैंड में तो इन्हें 'दुर्लभ प्रजाति' के वर्ग में रखा गया है। गौरेया 'पासेराडेई' परिवार की सदस्य है, लेकिन कुछ लोग इसे 'वीवर फिंच' परिवार की सदस्य मानते हैं। इनकी लम्बाई 14 से 16 सेंटीमीटर होती है तथा इनका वजन 25 से 32 ग्राम तक होता है। एक समय में इसके कम से कम तीन बच्चे होते हैं। गौरेया अधिकतर झुंड में ही रहती है। भोजन तलाशने के लिए गौरेया का एक झुंड अधिकतर दो मील की दूरी तय करता है। यह पक्षी कूड़े में भी अपना भोजन ढूंढ़ लेते हैं। गोरैया के घटती संख्या का मुख्य कारण भोजन-जल की कमी, घोंसलों के लिए उचित स्थान का न मिलना और तेजी से कटते पेड़-पौधे हैं।

गौरैया के बच्चों का भोजन शुरूआती दस-पन्द्रह दिनों में सिर्फ कीड़े-मकोड़े ही होते है, लेकिन आजकल लोग खेतों से लेकर अपने गमले के पेड़-पौधों में भी रासायनिक पदार्थों का उपयोग करते हैं, जिससे ना तो पौधों को कीड़े लगते हैं और ना ही इस पक्षी का समुचित भोजन पनप पाता है। इसके अलावा  मोबाइल फोन तथा मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली सूक्ष्म तरंगें गौरैया के अस्तित्व के लिए खतरा बन रही हैं। इसलिए गौरैया समेत दुनिया भर के हज़ारों पक्षी आज या तो विलुप्त हो चुके हैं या फिर किसी कोने में अपनी अन्तिम सांसे गिन रहे हैं। आज लोगों में गौरैया को लेकर जागरूकता पैदा किए जाने की ज़रूरत है, क्योंकि कई बार लोग अपने घरों में इस पक्षी के घोंसले को बसने से पहले ही उजाड़ देते हैं। कई बार बच्चे इन्हें पकड़कर पहचान के लिए इनके पैर में धागा बांधकर इन्हें छोड़ देते हैं। इससे कई बार किसी पेड़ की टहनी या शाखाओं में अटक कर इस पक्षी की जान चली जाती है। इतना ही नहीं कई बार बच्चे गौरैया को पकड़कर इसके पंखों को रंग देते हैं, जिससे उसे उड़ने में दिक्कत होती है और उसके स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ता है।

पक्षी विज्ञानियों के अनुसार गौरैया को फिर से बुलाने के लिए लोगों को अपने घरों में कुछ ऐसे स्थान उपलब्ध कराने चाहिए, जहां वे आसानी से अपने घोंसले बना सकें और उनके अंडे तथा बच्चे हमलावर पक्षियों से सुरक्षित रह सकें। वैज्ञानिकों का मानना है कि गौरैया की आबादी में कमी का एक बड़ा कारण यह भी है कि कई बार उनके घोंसले सुरक्षित जगहों पर न होने के कारण कौए जैसे हमलावर पक्षी उनके अंडों तथा बच्चों को खा जाते हैं। गौरैया आजकल अपने अस्तित्व के लिए मनुष्यों और अपने आसपास के वातावरण से काफ़ी जद्दोजहद कर रही है। ऐसे समय में हमें इन पक्षियों के लिए वातावरण को इनके प्रति अनुकूल बनाने में सहायता प्रदान करनी चाहिए। तभी ये हमारे बीच चहचहाएंगे । मनुष्यों को गौरैया के लिए कुछ ना कुछ तो करना ही होगा, वरना यह भी मॉरीशस के 'डोडो' पक्षी और गिद्ध की तरह पूरी तरह से विलुप्त हो जाएंगे। इसलिए सभी को मिलकर गौरैया का संरक्षण करना होगा। क्या आप अपने घर के आंगन-मुंडेर में गोरैया को आने देंगे, उसे निमंत्रित करेंगे, उसे आसरा देंगे? अगर आप इसके लिए तैयार हैं, तो समझो आप पर्यावरण के सच्चे रक्षक ही नहीं, बल्कि अपने घर में सुख-शांति का संदेशा देने का काम भी करेंगे। आपको बस एक कदम इन चिड़ियों के लिए उठाना होगा, बाकी कदम आपके भीतर की आत्मा उठा लेगी, बस एक कदम….


विचार मंच
...
केजी बालकृष्ण आयोग: बाबासाहेब के दृष्टिकोण लागू करने का दायित्व
गुरुवार, 13 अप्रैल 2023
...
"बदल गया सक्षम"
शनिवार, 08 अप्रैल 2023
...
तनु की सूझबूझ
शनिवार, 08 अप्रैल 2023
...
भाजपा की शून्य से अनंत विजय की यात्रा...
गुरुवार, 06 अप्रैल 2023
...
महावीर को जीवन का हिस्सा बनाएं, जीवन में ढालें
रविवार, 02 अप्रैल 2023
...
अहिंसा, सत्य , अस्तेय, ब्रह्मचर्य , अपरिग्रह के स्वामी भगवान महावीर
रविवार, 02 अप्रैल 2023
...
राम नवमी पर विशेष
बुधवार, 29 मार्च 2023
...
उत्कृष्ट जीवन की प्रेरणा हैं श्रीराम
बुधवार, 29 मार्च 2023
...
नव संवत्सर : पूर्णत: वैज्ञानिक व प्राकृतिक नव वर्ष
मंगलवार, 21 मार्च 2023
...
अपनी जड़ों की ओर लौट रहा भारत
मंगलवार, 21 मार्च 2023