साहित्य मनुष्य मात्र की पूंजी है - आशुतोष द्विवेदी
आस्था समाज रचना सेवा अनुसंधान संस्थान द्वारा सारस्वत अभिनन्दन और रचनापाठ समारोह का आयोजन
उज्जैन। साहित्य केवल साहित्यकार की नहीं अपितु मनुष्य मात्र की पूंजी है। समाज को संस्कारित करने में साहित्य की अहम भूमिका होती है। साहित्य समाज का दर्पण भी है और मार्गदर्शक भी है।
यह विचार प्रख्यात साहित्यकार एवं फिजी के भारतीय उच्चायोग के वरिष्ठ अधिकारी आशुतोष द्विवदी ने आस्था समाज रचना सेवा अनुसंधान संस्थान द्वारा आयोजित सारस्वत अभिनन्दन और रचनापाठ समारोह में व्यक्त किए। उन्होंने अपने गीतों, गजलों और कविताओं से श्रोताओं को अभिभूत कर लिया। अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ साहित्यकार श्रीराम दवे ने कहा कि छन्दबद्ध कविताएं लिखना कठिन कार्य है और आशुतोष द्विवेदी इस कार्य में निष्णात हैं। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि कवयित्री और शिक्षाविद् डॉ. पंकजा सोनवलकर ने कहा कि आशुतोष द्विवेदी विदेशों में भारतीय संस्कृति के प्रचार, प्रसार का महनीय कार्य कर रहें हैं। कार्यक्रम में आशुतोष द्विवेदी का सारस्वत अभिनन्दन वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. प्रमोद त्रिवेदी और अतिथियों द्वारा किया गया। अभिनंदन पत्र का वाचन डॉ हरीशकुमार सिंह ने किया। इस अवसर पर पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त होने के उपलक्ष्य में अंजना शुक्ला का सम्मान भी किया गया। कार्यक्रम में स्वागत वक्तव्य आस्था संस्था की सचिव डॉ. पांखुरी जोशी ने दिया। संचालन वरिष्ठ साहित्यकार अशोक वक़्त ने किया। कार्यक्रम में डॉ. एस.एन.गुप्ता, राधाकिशन वाडिया, कामता प्रसाद द्विवेदी, जिया राणा, लक्ष्मी द्विवेदी, हामिद गौहर, अनुभव प्रधान, प्रवीण जोशी, काजल ठक्कर, आरती द्विवेदी, आराधना गंधरा, बृज खरे, मुकेश बिजोले, प्रकाश देशमुख के साथ ही जोशी आई. ए. एस. संस्थान के प्रशिक्षार्थी सम्मिलित थे।